तेजस्वी विचारों से ओत-प्रोत हिंदु धर्म प्रसारक – स्वामी विवेकानंद
विहीस (दिल्ली ब्यूरो – भारत) :: स्वामी विवेकानंद का मूल नाम नरेंद्रनाथ था । उनका जन्म 12 जनवरी 1863 के दिन कोलकाता में हुआ । बाल्यावस्था में ही विवेकानंद के व्यवहार में दो बातें स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगीं । प्रथम वे वृत्ति से श्रद्धालु एवं दयालु थे तथा बचपन से ही कोई भी साहसी कृत्य बेधडक साहस एवं निर्भयता से करते थे । स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण कुटुंब परिवार धार्मिक होने के कारण बाल्यावस्था में ही उन पर धर्म विषयक योग्य धार्मिक संस्कार होते गए । 1870 में उनका नामांकन ईश्वरचंद्र विद्यासागर की पाठशाला में कराया गया । पाठशाला में रहते हुए अध्ययन करने के साथ-साथ विवेकानंद ने बलोपासना भी की। स्वामी विवेकानंद में स्वभाषाभिमान भी था, यह दर्शाने वाली एक घटना। अंग्रेजी शिक्षण के समय उन्होंने कहा, `गोरों की, अर्थात यवनों की इस भाषा में मैं कदापि नहीं पढूंगा।’ ऐसा कहकर लगभग 7-8 महीने उन्होंने वह भाषा सीखना ही अस्वीकार कर दिया। अंत में विवश होकर उन्होंने अंग्रेजी सीखी। विवेकानंद ने मैट्रिक की माध्यामिक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर कुल तथा पाठशाला की प्रतिष्ठा बढाई। आगे कोलकाता के प्रेसिडेन्सी महाविद्यालय से उन्होंने `तत्त्वज्ञान’ विषय में एम.ए. किया।
स्वामी विवेकानंदजी आधुनिक भारत के एक महान चिंतक, महान देशभक्त, दार्शनिक, युवा संन्यासी, युवाओं के प्रेरणास्रोत और एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे। भारतीय नवजागरण का अग्रदूत यदि स्वामी विवेकानंद को कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। ‘विवेकानंद’ दो शब्दों द्वारा बना है। विवेक+आनंद। ‘विवेक’ संस्कृत मूल का शब्द है। ‘विवेक’ का अर्थ होता है बुद्धि और ‘आनंद’ का शाब्दिक अर्थ होता है – खुशियां।
स्वामी विवेकानंद ने 16 वर्ष की आयु में कलकत्ता से एंट्रेंस की परीक्षा पास की और कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की। स्वामी विवेकानंद (नरेन्द्र) नवंबर,1881 ई. में रामकृष्ण से मिले और उनकी आंतरिक आध्यात्मिक चमत्कारिक शक्तियों से नरेन्द्रनाथ इतने प्रभावित हुए कि वे उनके सर्वप्रमुख शिष्य बन गए। और स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को कलकत्ता के निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।
स्वामी विवेकानंद भारतीय संस्कृति एवं हिन्दू धर्म के प्रचारक-प्रसारक एवं उन्नायक के रूप में जाने जाते हैं। विश्वभर में जब भारत को निम्न दृष्टि से देखा जाता था, ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1883 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म पर प्रभावी भाषण देकर दुनियाभर में भारतीय अध्यात्म का डंका बजाया। 11 सितंबर 1893 को विश्व धर्म सम्मेलन में जब उन्होंने अपना संबोधन ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ से प्रांरभ किया तब काफी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट होती रही। स्वामी विवेकानंद के प्रेरणात्मक भाषण की शुरुआत ‘मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों’ के साथ करने के संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
‘न्यूयॉर्क हेरॉल्ड’ ने लिखा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि धर्म संसद में विवेकानंद सबसे महान व्यक्तित्व हैं। उन्हें सुनकर लगता है कि भारत जैसे ज्ञानी राष्ट्र में ईसाई धर्म प्रचारक भेजना कितना मूर्खतापूर्ण है। विवेकानंद की प्रशंसा में ‘न्यूयॉर्क क्रिटिक’ ने लिखा, ‘वे ईश्वरीय शक्ति प्राप्त वक्ता हैं। उनके सत्य वचनों की तुलना में उनका सुन्दर बुद्धिमत्तापूर्ण चेहरा पीले और नारंगी वस्त्रों में लिपटा हुआ कम आकर्षक नहीं।’ ‘बोस्टन इवनिंग ट्रांसस्क्रिप्ट’ के मुताबिक, ‘धर्म संसद में विवेकानंद सबसे लोकप्रिय वक्ता हैं। वे यदि केवल मंच से गुजरते भी हैं तो तालियां बजने लगती हैं।’
विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् 1985 ई. को अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया। भारतीय केंद्र सरकार ने वर्ष 1984 में युवा वर्ष मनाने का फैसला किया था। राष्ट्रीय युवा दिवस स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस (12 जनवरी) पर वर्ष 1985 से मनाया जाता है। भारत में स्वामी विवेकानंद की जयंती अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सुभाषचंद्र बोस का कहना था- ‘स्वामी विवेकानंदजी आधुनिक भारत के निर्माता हैं।’ नोबेल पुरस्कार सम्मानित गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था – ‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।’
युवाओं के प्रेरणास्रोत, समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था:-
‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’
‘उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि अपने लक्ष्य तक न पहुंच जाओ।’
भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले स्वामी विवेकानंद ने भारतीय युवाओं में स्वाभिमान को जगाया और उम्मीद की नई किरण पैदा की। भारतीय युवा और देशवासी भारतीय नवजागरण के अग्रदूत स्वामी विवेकानंद के जीवन और उनके विचारों से प्रेरणा लें। 4 जुलाई 1902 को बेलूर के रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए। 39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे
गुरुभेंट तथा संन्यासदीक्षा
नरेंद्र के घर में ही पले-बढे उनके एक संबंधी डॉ. रामचंद्र दत्त रामकृष्णजी के भक्त थे । धर्म के प्रति लगाव से प्रेरित हो नरेंद्र के मन में बचपन से ही तीव्र वैराग्य देख डॉ. दत्त एक बार उनसे बोले, `भाई, यदि धर्मलाभ ही तुम्हारे जीवन का उद्देश्य हो, तो तुम ब्राह्मोसमाज इत्यादि