चराचर में ईश्वर को देखता सनातन धर्म, असमानता को कोई स्थान नहीं – कु. कृतिका खत्री

– करवाचौथ के अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा विशेष ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित!

वैन (दिल्ली ब्यूरो) :: सनातन धर्म पर आलोचना होती है कि स्त्रियों को हिन्दू धर्म में दुय्यम स्थान है। जबकि सनातन धर्म हर व्यक्ति में जो आत्मस्वरूप ईश्वर है, उसकी ओर देखना सिखाता है। और इतना ही नही, चराचर में भी ईश्वर का अंश सनातन धर्म देखना सिखाता है। वहां असमानता कैसे हो सकती है? – ये प्रतिपादन सनातन संस्था की दिल्ली प्रवक्ता, कु. कृतिका खत्री ने किया।

करवाचौथ के अवसर पर इसका आध्यात्मिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व बताने हेतु एक विशेष कार्यक्रम हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित किया गया, इसमें वे बोल रही थी।

इस कार्यक्रम में भारतीय ऐतिहासिक और सामाजिक शोध परिषद में प्राध्यापिका,डॉ रिंकू वढेरा जी ने उपस्थितों को व्रत का महत्त्व, और साथ ही, कम्यूनिस्ट महिलाओं द्वारा करवा चौथ के अवसर पर जो अपप्रचार किया जाता है, उसका खंडन किया। उन्होंने कहा, यदि सिंदूर लगाना, व्रत रखना, इससे हिन्दू महिलाओं को आनंद मिलता है, तो इसमें तथाकथित नारीवादियों को क्या समस्या है?

इसी के साथ ही सिम्पली जयपुर की सम्पादिका, श्रीमती अंशु हर्ष जी ने करवाचौथ का धार्मिक, अध्यात्मिक महत्त्व बताते हुए कहा, अखंड सुहाग के लिये महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखती है । दिन भर निर्जला व्रत रखकर शाम को 16 श्रृंगार करके मां गौरी, भगवान शंकर, गणेश व कार्तिकेय को पुष्प, अक्षत, दीप आदि अर्पित करके करवा चौथ कथा का पाठ किया जाता है । साथ ही चन्द्र को अर्घ्य देकर पति को छलनी से देखने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। मान्यता है कि करवाचौथ व्रत से व्रती महिलाओं के पति को दीर्घायु प्राप्त होती है।

इस कार्यक्रम को दिल्ली और मध्य प्रदेश के फेसबुक पेज और हिन्दू जनजगृति समिति के उत्तर भारत यूट्यूब चैनल से प्रसारित किया गया। इस कार्यक्रम का लाभ हजारों जिज्ञासु और धर्मनिष्ठों ने लिया।

Source :: vannewsagency

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