‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ की ओर से ‘सूर्योपासना’ के विषय में अनुसंधान प्रस्तुत

विहीस (मुंबई, भारत) :: मुंबई – ‘छठ पर्व’ मूलतः ‘सूर्य षष्ठी’ व्रत होने से उसे ‘छठ’ कहा जाता है। ‘छठ व्रत’ अर्थात सूर्योपासना। सूर्योपासना के कारण व्यक्ति की सूक्ष्म नकारात्मक ऊर्जा न्यून (कम) अथवा नष्ट होती है, तथा सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती अथवा बढती है, यह ‘युनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ (यूएएस) नामक वैज्ञानिक उपकरण और सूक्ष्म-परीक्षण की सहायता से किए गए सूर्योपासना के संदर्भ में विविध प्रयोगों से स्पष्ट होता है। ५००० वर्षों पूर्व किसी भी बाह्य, स्थूल उपकरण की सहायता लिए बिना हमारे ऋषी-मुनियों ने अद्वितीय उपासना पद्धति निर्माण की। उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए शब्द ही नहीं हैं’, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की आधुनिक वैद्या (श्रीमती) नंदिनी सामंत ने किया।

वे छठ पर्व के निमित्त ‘पूर्वांचल गौरव’ संस्था द्वारा 18 से 20 नवंबर की अवधि में आयोजित ‘ऑनलाइन छठ महापर्व’ कार्यक्रम में बोल रही थीं। इस कार्यक्रम में 20 नवंबर को सूर्योपासना के विषय में अध्यात्मशास्त्र वैज्ञानिक भाषा में बताने के लिए महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय ने इस संदर्भ में किए आध्यात्मिक अनुसंधान का विडियो प्रस्तुत किया। इस विडियो में सूर्योपासना के अंतर्गत आगे बताई गई कृतियां करनेवाले व्यक्तियों पर होनेवाले सूक्ष्म-ऊर्जास्तरीय परिणामों का ‘यूएएस’ उपकरण द्वारा किया गया अध्ययन बताया गया।

सूर्योपासना के अंतर्गत किए जानेवाले कृत्य

1. सूर्य को सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पर अर्घ्य देना
2. गायत्रीमंत्र का जप 108 बार करना
3. सूर्य के बारह नाम लिए बिना सूर्यनमस्कार करना और सूर्य के बारह नाम लेते हुए सूर्यनमस्कार करना।
किसी भी उपासना का मूल परिणाम सूक्ष्मस्तर पर होता है । यह परिणाम केवल सूक्ष्म-परीक्षण से ही ज्ञात हो सकता है। इस हेतु महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के सूक्ष्म की घटनाओं के संदर्भ में ज्ञान मिलनेवाली और उसे चित्र के रूप में (अर्थात सूक्ष्म-चित्र रूप में) बता पानेवाली अनुसंधान समन्वयक कु. प्रियांका लोटलीकर द्वारा बनाए गए सूर्यपूजा के समय घटनेवाली सूक्ष्म की प्रक्रिया का खुलासा दिखानेवाले सूक्ष्म-चित्र प्रस्तुत किए गए।

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